भारत के सबसे रहस्यमयी और डरावने भानगढ़ किले का इतिहास | Bhangarh Fort History In Hindi



Bhangarh Fort History In Hindi : वेसे तो हमारे देश मे बहुत से हॉनटेड प्लेस है लकीन इस लिस्ट मे जिसका नाम सबसे उपर आता है वो है भानगढ़ का किला (Bhangarh Fort)  जो की बोलचाल मे “भूतों का भानगढ़” नाम से जायदा प्रशिद है | भानगढ़ का किला (Bhangarh Fort)  राजस्थान के अल्वर जिले में स्थित है. जयपुर और दिल्ली मार्ग के मध्य में स्थित यह किला इस किला से कुछ ही दूरी पर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान’ (Sariska National Park) के एक छोर से लगा हुआ है.
भानगढ़ का किला अपने बर्बाद होने के इतिहास और रहस्यमयी घटनाओं के कारण मशहूर है यह किला  भारत के सबसे डरावने स्थानों में गिना जाता है| यहाँ तक कि सूर्योदय और सूर्यास्त के उपरांत किले में प्रवेश न करने के संबंध में पुरातत्व विभाग द्वारा भी चेतावनी जारी की गई है|
भानगढ़ का किला1573 में निर्मित होने के उपरांत लगभग 300 वर्षों तक आबाद रहा| उसके बाद यह किला ध्वस्त हो गया | इसके ध्वस्त और उजाड़ होने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं, जो यहाँ के लोगों द्वारा सुनाई जाती हैं.

भानगढ़ किले का इतिहास (Bhangarh Fort History In Hindi)


भानगढ़ किले का निर्माण (1573) में आमेर के महाराजा भगवंतदास ने करवाया था यह किला उजाड़ होने के पूर्व लगभग (300) वर्षों तक आबाद रहा रहा|
भगवंतदास महाराज के बड़ा पुत्र मानसिंह थे, जो मुग़ल बादशाह अकबर के नवरत्नों में सम्मिलित्त थे मानसिंह के छोट भाई माधो सिंह ने (1613) में इस किले को अपनी रिहाईश बना लिया| माधो सिंह के बाद उनका पुत्र छत्र सिंह गद्दी पर बैठा|
माधो सिंह राजा तीन पुत्र थे सुजान सिंह, छत्र सिंह और तेज सिंह. माधोसिंह की मृत्यु के उपरांत भानगढ़ किले का अधिकार छत्र सिंह को मिला. छत्रसिंह का पुत्र अजबसिंह था|
माधो सिंह के पुत्र अजबसिंह ने भानगढ़ को अपनी रिहाइश नहीं बनाया|इसके साथ ही भानगढ़ किले की चमक कम होने लगी तो अजबसिंह राजा ने भानगढ़ किले के निकट ही अजबगढ़ बसाया और वहीं रहने लगा| उसके दो पुत्र काबिल सिंह और जसवंत सिंह भी अजबगढ़ में ही रहे, जबकि तीसरा पुत्र हरिसिंह (1722) में भानगढ़ की गद्दी संभाली|
राजा हरिसिंह के दो पुत्र मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समकालीन थे यह समय औरंगजेब के शासन काल का था | औरंगजेब कट्टर पंथी मुसलमान था | उसने अपने बाप को नहीं छोड़ा तो इन्हे कहाँ छोड़ता औरंगजेब के प्रभाव में आकर राजा हरिसिंह दोनों पुत्र ने मुसलमान धर्म अपना लिया था| धर्म परिवर्तन उपरांत उनको मोहम्मद कुलीज़ और मोहम्मद दहलीज़ के नाम से जाना जाने लगा| औरंगजेब ने इन दोनों को भानगढ़ की ज़िम्मेदारी सौंपी थी|
औरंगजेब के शासन के उपरांत मुग़ल कमज़ोर पड़ने लगे, तब जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने मोहम्मद कुलीज़ और मोहम्मद दहलीज़ को दोनों भाइयो को मारकर भानगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया| तथा बाद मे माधो सिंह के वंशजों को गद्दी दे दी।



भानगढ़ के उजाड़ होने की कहानी  - भानगढ़ के उजाड़ होने के संबंध में दो कहानियाँ प्रचलित है:
पहली कहानी : योगी बालूनाथ का श्राप  
1.    1.   इस कहानी के अनुसार जहाँ भानगढ़ किले का निर्माण करवाया गया, वह स्थान योगी बालूनाथ का तपस्थल था| वहा पर योगी बालूनाथ महाराज विराज थे बालूनाथ महाराज इस वचन के साथ महाराजा भगवंतदास को भानगढ़ किले के निर्माण की अनुमति दी थी कि किले की परछाई किसी भी कीमत पर उसके तपस्थल पर नहीं पड़नी चाहिए| महाराजा भगवंतदास जब तक जिंदा थे उन्होने तो अपने वचन का मान रखा, किंतु उसके वंशज माधोसिंह राजा ने इस वचन की अवहेलना करते हुए किले की ऊपरी मंज़िलों का निर्माण करवाने लगे|जसे ही भानगढ़ किले के   ऊपरी मंज़िलों का निर्माण के कारण योगी बालूनाथ के तपस्थल पर किले की परछाई पड़ गई.ऐसा होने पर योगी बालूनाथ महाराज ने आवेश होकर श्राप दे दिया कि भानगढ़ किला आबाद नहीं रहेगा| उनके श्राप के प्रभाव में किला ध्वस्त हो गया|
दूसरी कहानी : तांत्रिक सिंधु सेवड़ा और राजकुमारी रत्नावति परिचय 
2. दुसरी कहानी के अनुसार भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावति बेहद खुबुशूरत थी|उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे भानगढ़ राज्य में थी और देश के कोने कोने से राजकुमार उससे विवाह करने के इच्छुक थे| उस समय राजकुमारी की उम्र महज 18 वेर्ष थी| उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उसी भानगढ़ राज्य में सिंधु सेवड़ा नामक एक तांत्रिक रहता था| वह काले जादू में महारथी था|येसा बताया जाता है की वह राजकुमारी के रूप का दीवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था| राजकुमारी रत्नावति को देखकर वह उस पर संदेह हो गया था| वह किसी भी सूरत में राजकुमारी को हासिल करना चाहता था| एक दिन राजकुमारी रत्नावति की दासी बाज़ार में उनके लिए श्रृंगार का तेल लेने गई| तब तांत्रिक सिंधु सेवड़ा ने तांत्रिक शक्तियों से उस तेल पर वशीकरण मंत्र प्रयोग कर रत्नावति के पास भिजवाया| तांत्रिक सिंधु सेवड़ योजना थी कि वशीकरण के प्रभाव से राजकुमारी रत्नावति उसकी ओर खिंची चली आयेंगी|
 लेकिन राजकुमारी रत्नावति तांत्रिक का छल समझ गई और उसने वह तेल की बोतोल को उठाया और एक चट्टान पर गिरा दिया|जसे ही राजकुमारी ने तेल की बोतोल को चट्टान पर  गिराया वह तंत्र विद्या के प्रभाव में वह चट्टान तीव्र गति से तांत्रिक सिंधु सेवड़ा की ओर जाने लगी| जब तांत्रिक ने चट्टान से अपनी मौत निश्चित देखी, तो तांत्रिक ने मरने पहले ही उसने श्राप दिया कि भानगढ़ बर्बाद हो जायेगा| वहाँ के भानगढ़ मे रहने वालों की शीघ्र मौत हो जायेगी और उनकी आत्माएं सदा भानगढ़ में भटकती रहेंगी| तांत्रिक सिंधु सेवड़ा चट्टान के नीचे दबकर मर गया| इस घटना के कुछ दिनों बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ में युद्ध हुआ और उस युद्ध में भानगढ़ की हार हुई| युद्ध उपरांत पूरा भानगढ़ तबाह हो गया. वहाँ के रहवासी मर गए, राजकुमारी रत्नावति भी बच न सकी. उसके बाद भानगढ़ कभी न बस सका| तांत्रिक तो मर गया लेकिन उसका श्राप आज भी भानगढ़ मे जिंदा है |

रहस्मयी घटनायें

आज भी भानगढ़ किला वासे ही स्थिति में उजाड़ पड़ा हुआ है| वहा लोगों का कहना है की यहाँ से रात में किसी के रोने और चिल्लाने की तेज आवाजें आते हैं| कई बार यहाँ एक साये को भी भटकते हुए देखने की बात कही गई है.
इन बातों में कितनी सच्चाई है, ये कोई नहीं जानता लेकिन पुरातत्व शास्त्रियों ने भी खोज-बीन के बाद इस किले को असामान्य बताया है| फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्तक हिदायत दे रखी  है कि सूर्यास्ता के बाद इस इलाके में किसी भी व्यतक्ति के रूकने के लिए मनाही है।
रहस्यमयी घटनाओं के कारण पुरातत्व विभाग द्वारा भानगढ़ किले को भुतहा घोषित कर दिया है. किले के प्रवेश द्वार पर उनके द्वारा बोर्ड लगाया गया है, जिसके अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त के उपरांत किले में प्रवेश वर्जित है.

भानगढ़ किले की संरचना
भानगढ़ किला तीन ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इसके अग्र भाग में विशाल प्राचीर है, जो दोनों ओर पहाड़ियों तक विस्तृत है| सुरक्षा की दृष्टि से इसे भागों में बांटा गया है। सबसे पहले एक बड़ी प्राचीर है जिससे दोनो तरफ़ की पहाड़ियों को जोड़ा गया है। इस प्राचीर के मुख्य भाग में हनुमान जी की प्रतिमा विराजमान है|
मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर बाज़ार प्रारंभ हो जाता है| बाज़ार की समाप्ति के बाद राजमहल के परिसर के विभाजन के लिए त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है  इसके पश्चात राज महल स्थित है त्रिपोलिया द्वार से राजमहल के परिसर में प्रवेश किया जा सकता है.
मंदिर स्थल
भानगढ़ में कई मंदिर स्थल भी हैं, जिनमें मंदिर प्रमुख है. यहाँ स्थित मंदिरों की दीवारों और खंभों की नक्काशी अंदाजा लगाया जा सकता है, कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा
किले में स्थित प्रमुख मंदिर
·         भगवान सोमेश्वर का मंदिर
·         गोपीनाथ का मंदिर
·         मंगला देवी का मंदिर
·         केशव राय का मंदिर
पूरा भानगढ़ खंडहर में तब्दील हो चुका है. लेकिन यहाँ के मंदिर सही-सलामत हैं. हालांकि मंदिरों में सोमेश्वर महादेव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग को छोड़कर किसी भी मंदिर में मूर्तियाँ नहीं हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में केवल तांत्रिक सिंधु सेवड़ा के वंशज की पूजा करते है.
सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक  बाबड़ी  है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं  इसके अतिरिक्त ध्वस्त किले के अवशेष हैं.
कैसे पहुँचे भानगढ़
भानगढ़ का किला जयपुर-दिल्ली मार्ग में स्थित है. यदि हवाई मार्ग की बात की जाये, तो nearest airport जयपुर का Santander Airpot है, जहाँ से भानगढ़ की दूरी ५६ कि.मी. है. यदि ट्रेन से यात्रा करनी हो, तो nearest Railway Station भानगढ़ से २२ कि.मी. की दूरी पर स्थित Dausa Railway Station है. airport और railway station से भानगढ़ सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है और वहाँ पहुँचने लिए टैक्सी या पब्लिक ट्रांसपोर्ट बस का उपयोग किया जा सकता है

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