जालोर किला का इतिहास :

  



  जालोर किले के निर्माण का उचित समय ज्ञात नहीं है परन्तु लोगो को ऐसा मानना है की इस किले का निर्माण 8 वीं और 10 वीं शताब्दी के दोरान किया गया था।


जालोर किले पर परमार समुदाय के लोग राज्य किया करते थे जो 10 वीं शताब्दी के राजपूत वंश के शासक थे। नाडोल के शासक यानि नाडोल के राजा अल्हाना के छोटे बेटे कीर्तिपाल ने जालोर के चौहान श्रृंखला की स्थापना की थी।                                                                   
   
जालोर किले का नियंत्रण सं 1181 में उन्होंने परमारों से अपने हाथो में ले लिया था और जसे ही जालोर किले का नियंत्रण प्रमारों ने अपने हाथ मे लिया वासे ही स्थान ग्रहण करने के पश्चात इस किले का नाम सोंगारा रख दिया। परमार वंश के पुत्र समरसिंह को सं 1182 में, को उनको उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। समरसिंह के पश्चात उदयसिंह को यहाँ का शासक घोषित कर दिया गया। जालोर के इतिहास उदयसिंह का शासन काल के समय मे स्वर्ण अवधि का रहा थी।क्योकि वे एक सक्षम और शक्तिशाली राजा थे। उन्होंने बहुत सारे राज्यो पर शासन किया था। राजा उदयसिंह ने मुस्लिमो से नाडोल और मांडोर का नियंत्रण वापस ले लिया था। इल्तुतमिश ने जालोर पर सं 1228 में, घेरेबंदी कर दी थी परन्तु उदयसिंह ने भी इस का जमकर मुक़ाबला किया। उनके पश्चात चंचिगादेवा और सामंतसिंह जालोर के शासक बने। सामंतसिंह के पश्चात उनके पुत्र कनहाद देव जालोर के शासक बने।

1. दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने सं 1311 में, कनहाद देव सोंगारा के शासन काल के समय , ने जालोर पर आक्रमण कर दिया और इसे नष्ट कर दिया। कनहाद देव सोंगारा और उनके पुत्र विरामदेव ने जालोर किले की राशा करते हुआ अपने प्राणो का बलिदान दे   दिया और उनकी मृत्यु के पश्चात जालोर की कई स्त्रियों ने खुद को जौहर कर लिया।
      
2. जालोर किले में मौजूद किला मस्जिद में गुजराती शैली (16 वीं शताब्दी के अंत की) की वास्तुकला सजावटों का उदाहरण देखने को मिलता है जो देखने में बहुत आकर्षक प्रतीत होते है।
      
3. जालोर किले के भीतर मौजूद महल वर्तमान में नष्ट हो चूका है जिसमे केवल कुछ दीवारे है जिसके चारो ओर बड़े पत्थरो की संरचनाओं के खंडहर शेष है। किले के कई स्थानों पर आज भी उसकी टूटी फूटी दीवारे मौजूद है। किले में पीने के पानी की कई टंकिया है।
      
4. जालोर किले में संत रेहमद अली बाबा की समाधि है जो की एक महात्मा संत थे। मुख्य द्वार के निकट एक मकबरा है जो मोहम्मदन संत मलिक शाह का मकबरा है।
       
5. जालोर के किले में जैनियो महात्मा संत के भी कई मंदिर है जिनमे आदिनाथ, महावीर, पार्शवनाथ और शांतिनाथ के जैन मंदिर मौजूद है।
      
6. इन सब मे सबसे पुराना मंदिर आदिनाथ का है, जो 8 वीं शताब्दी के जैन तीर्थ कार थे। मंदिर में मौजूद मंडप का निर्माण 1182 A.D. में एक श्रीमाली वैश्या यासोविरा ने करवाया था। इस किले संरचना का निर्माण सफ़ेद संगमरमर से किया गया है। और यह किला गहरी किलो की दीवारों और चट्टानों के बीच स्थित है।
     
7. जालोर के शासकों ने पार्स्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था और उसके पश्चात इस मंदिर का विनिर्माण सं 1785 A.D. में करवाया गया था। इस मंदिर में एक शानदार तोरण के साथ – साथ एक सुनहरी छतरी भी है। इस मंदिर का निर्माण बाल पोल के निकट किया गया है जो किले की उत्तर पश्चिमी दिशा में स्थित है।
     
8. महावीर के मंदिर को चन्दनविहार नाहादराव के नाम से भी पुकारा या जाना जाता है। इस मंदिर नाम प्रतिहार शासक के पश्चात रख गया था जो जैन परम्परा के नायक थे जिन्होंने 14 वीं शताब्दी के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया था।


हिन्दू मंदिर :

जालोर किले में एक पुराना शिव मंदिर है जो भगवान् शिव को समर्पित है। भगवान् शिव मंदिर का निर्माण जालोर के शासक कनहाद देव ने करवाया था। इसी तरह जोधपुर के शासक माह सिंह ने श्री जलंधरनाथ के समाधी मंदिर का निर्माण किया था। इसके पश्चात सं 2005 में पवित्र श्री शान्तिनाथजी महाराज ने समाधी  मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया जिसमे भक्तो के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध थी। किला परिसर में अम्बा माता, आशापुरी और हनुमना की का मंदिर भी मौजूद है।


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