गागरोन किले का इतिहास, जिधर हजारों महिलाए ने यहाँ किया था सामूहिक जौहर
कौन से किले हैं जिन्हें इतिहास ने भुला
दिया, क्या आप जानते हैं की राजपूतो का प्रमुख
एतिहासिक किला कौन सा हैं, चित्तौड के बाद ऐसा
कौन सा किला हैं जिसमे हजारो महिलाओं ने अपनी आन बाण शान की खातिर मुस्लिम
आक्रमणकारियों से बचने के लिए सामूहिक जौहर किया? भारत
का ऐसा कौन सा एकमात्र किला हैं जिसकी कोई नींव नहीं है? आपके इन्हें सैकड़ों सवालों के जवाब हैं
हमारी आज की इस पोस्ट में:
Gagron
Fort History in Hindi : दुनिया में सबसे अधिक
किले और गढ़ यदि कहीं हैं तो वो राजस्थान में। राजस्थान के किसी भी हिस्से में चले
जाइए, कोई न कोई दुर्ग या किला सीना ताने आपका
इंतजार करता हुआ आपको दिख जाएगा। आज हम आपको एक ऐसे ही किले ‘गागरोन’ के
बारे में बताएंगे। राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित यह किला चारों ओर से पानी
से घिरा हुआ है। यही नहीं यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी नींव नहीं है।
गागरोन का किला अपने गौरवमयी इतिहास के
कारण भी जाना जाता है। सैकड़ों साल पहले जब यहां के शासक अचलदास खींची मालवा के
शासक होशंग शाह से हार गए थे तो यहां की राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से
बचाने के लिए जौहर (जिंदा जला दिया) कर दिया था। सैकड़ों की तादाद में महिलाओं ने
मौत को गले लगा लिया था। इस शानदार धरोहर को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज की सूची
में भी शामिल किया है।
खासियतों से भरा है यह किला
गागरोन किले का निर्माण कार्य डोड राजा
बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था और 300
साल
तक यहां खीची राजा रहे। यहां 14 युद्ध और 2 जोहर (जिसमें महिलाओं ने अपने को मौत के
गले लगा लिया) हुए हैं। यह उत्तरी भारत का एकमात्र ऐसा किला है जो चारों ओर से
पानी से घिरा हुआ है इस कारण इसे जलदुर्ग के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एकमात्र
ऐसा किला है जिसके तीन परकोटे हैं। सामान्यतया सभी किलो के दो ही परकोटे हैं। इसके
अलावा यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसे बगैर नींव के तैयार किया गया है। बुर्ज
पहाडियों से मिली हुई है।
आखिर क्यों जलना पड़ा था हजारों
महिलाओं को?
अचलदास खींची मालवा के इतिहास प्रसिद्ध
गढ़ गागरोन के अंतिम प्रतापी नरेश थे। मध्यकाल में गागरोन की संपन्नता एवं समृद्धि
पर मालवा में बढ़ती मुस्लिम शक्ति की गिद्ध जैसी नजर सदैव लगी रहती थी। 1423 ई. में मांडू के सुल्तान होशंगशाह ने 30 हजार घुड़सवार, 84 हाथी व अनगिनत पैदल सेना अनेक अमीर राव
व राजाओं के साथ इस गढ़ को घेर लिया। अपने से कई गुना बड़ी सेना तथा उन्नत
अस्त्रों के सामने जब अचलदास को अपनी पराजय निश्चित जान पड़ी तो उन्होंने कायरतापूर्ण
आत्मसमर्पण के स्थान पर राजपूती परंपरा में,
वीरता
से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। दुश्मन से अपनी असमत की रक्षा के लिए हजारों
महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था।
आखिर क्यों सैकड़ों वर्षों तक
अचलदास के पलंग को किसी ने हाथ नहीं लगाया?
होशंगशाह जीत के बाद अचलदास की वीरता से
इतना प्रभावित हुआ कि उसने राजा के व्यक्तिगत निवास और अन्य स्मृतियों से कोई
छेड़छाड़ नहीं किया। सैकड़ों वर्षों तक यह दुर्ग मुसलमानों के पास रहा, लेकिन न जाने किसी भय या आदर से किसी ने
भी अचलदास के शयनकक्ष में से उसके पलंग को हटाने या नष्ट करने का साहस नहीं किया। 1950 तक यह पलंग उसी जगह पर लगा रहा।
कई दिनों तक आती रहीं पलंग पर
राजा के सोने और हुक्का पीने की आवाज
रेलवे में सुपरिटेंडेंट रहे ठाकुर जसवंत
सिंह ने इस पलंग के बारे में रोचक बात बताई। उनके चाचा मोती सिंह जब गागरोन के
किलेदार थे तब वे कई दिनों तक इस किले में रहे थे। उन्होंने स्वयं इस पलंग और उसके
जीर्ण-शीर्ण बिस्तरों को देखा था। उन्होंने बतलाया कि उस समय लोगों की मान्यता थी
कि राजा हर रात आ कर इस पलंग पर शयन करते हैं। रात को कई लोगों ने भी इस कक्ष से
किसी के हुक्का पीने की आवाजें सुनी थीं।
पलंग के पास रोज मिलते थे पांच
रुपए
हर शाम पलंग पर लगे बिस्तर को साफ कर, व्यवस्थित करने का काम राज्य की ओर एक
नाई करता था और उसे रोज सुबह पलंग के सिरहाने पांच रुपए रखे मिलते थे। कहते हैं एक
दिन रुपए मिलने की बात नाई ने किसी से कह दी। तबसे रुपए मिलने बंद हो गए। लेकिन
बिस्तरों की व्यवस्था, जब तक कोटा रियासत
रही, बदस्तूर चलती रही। कोटा रियासत के
राजस्थान में विलय के बाद यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी
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